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हसदेव अरण्य बचाने अब एनएच पर होगा प्रदर्शन, सत्ता परिवर्तन होते ही हजारों पेड़ों पर चली फिर आरी,आंकड़ों में भी बाजीगिरी 

छत्तीसगढ़/कोरबा -सरगुजा :-  लगातार विरोध के बावजूद राजनीतिक दलों के एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप के बीच परसा ईस्ट केबते बासन (पीईकेबी )खनन परियोजना के स्टेज -2 के लिए अब तक घने हरे भरे 30 हजार पेड़ों की बलि एवं जबरिया दमनात्मक कार्रवाई से आहत हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति ने अब राष्ट्रीय राजमार्ग सड़क पर आकर जनआंदोलन करने का ऐलान कर दिया है।

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सुरम्य सघन वनों से आच्छादित एवं जैव विविधताओं से भरपूर हसदेव अरण्य का इलाका छत्तीसगढ़ का फेफड़ा कहा जाता है।सन 2009 में तत्कालीन यूपीए सरकार में इसे नो गो एरिया घोषित किया गया था।यानि इस क्षेत्र में खनन गतिविधियों को अनुमति नहीं थी। साल 2012 में जब परसा ईस्ट केते बासन खनन परियोजना को स्टेज -2 की वन स्वीकृति जारी की गई थी इस दौरान भी उसमें यह शर्त शामिल की गई थी कि हसदेव में किसी भी नई कोयला खदान को अनुमति नहीं दी जाएगी। केंद्र में सत्ता परिवर्तन के बाद जब एनडीए की सरकार अस्तित्व में आई तो हसदेव अरण्य क्षेत्र में 6 कोल ब्लॉक खोलने की कवायद शुरू कर दी गई थी। जिसे देखते हुए सन 2015 में राहुल गांधी ने हसदेव अरण्य के समस्त ग्राम सभाओं के लोगों को संबोधित करते हुए उनके जल- जंगल -जमीन को बचाने के लिए संकल्प लिया था। यह भी कहा था कि वे इस संघर्ष में उनके साथ हैं। इन सबके बावजूद केंद्र सरकार अपने इरादों पर अडिग रही। और सुनियोजित तरीके से भोले भाले आदिवासियों को धोखे में रख फर्जी तरीके से ग्राम सभा के जरिए वन भूमि के डायवर्सन की प्रक्रिया पूरी करा ली।जब ग्रामीणों को इसकी भनक लगी तो हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले आदिवासी ग्रामीण फर्जी ग्राम सभा दस्तावेजों को रद्द कर दोषी अधिकारियों पर लगातार कार्रवाई की मांग करते रहे। 2018 से हसदेव अरण्य क्षेत्र के आदिवासी समुदाय आंदोलन करते आ रहे हैं। इन मांगों को लेकर फतेहपुर में सन 2019 में 73 दिनों तक धरना प्रदर्शन किया गया था। पर प्रशासन की तरफ की कोई पहल या कार्रवाई नहीं की गई।कोयला खनन परियोजनाओं के विरोध में छत्तीसगढ़ के सरगुजा और कोरबा जिले के 30 गांवों के 350 ग्रामीण हफ्तों तक पैदल मार्च कर राजधानी पहुंचे थे। ग्रामीणों ने आदिवासियों ने इसका नाम हसदेव बचाओ पदयात्रा दिया था। ग्रामीणों ने बिना ग्राम सभा के जमीन अधिग्रहण को लेकर जमकर आक्रोश जताया था।तत्कालीन राज्यपाल अनुसुइया उइके से भी मुलाकात की थी। लेकिन नतीजा सिफर रहा। अधिकारी अपनी ओछी चाल में कामयाब रहे और निहित स्वार्थ के लिए फर्जी ग्राम सभा का प्रस्ताव भेज दिया । जब तक ग्रामीणों को इसकी जानकारी मिली तब तक बहुत देर हो चुकी थी। राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को सरगुजा स्थित परसा कोल ब्लॉक में खनन कार्य शुरू करने के लिए केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से क्लियरेंस मिल गई । लिहाजा परसा ओपन कोल ब्लॉक के लिए राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को 841.548 हेक्टेयर रकबा आवंटित कर दिया गया था। इस बीच प्रबंधन ने अप्रैल 2022 से अगस्त 2022 के मध्य पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में 4500 से अधिक पेड़ काट डाले । फोर्स की मौजूदगी में पेंड काटे गए। तब स्थानीय प्रशासन सरकार पर कार्पोरेट दबाव हावी होने लाखों पेंड काटने की मौन स्वीकृति के गम्भीर आरोप लगे थे। 2 मार्च से हसदेव अरण्य के साल्ही पँचायत के गाँव हरिहरपुर में स्थानीय ग्रामीणों की हाथ में तिरंगा एवं संविधान की प्रतियां लेकर बेमियादी हड़ताल के बावजूद पेंड कटाई की गई थी। जिसे लेकर पेशा एक्ट का खुला उल्लंघन बताते हुए स्थानीय ग्रामीण लाठी डंडों से लैस होकर पेंड कटाई के खिलाफत में उतर आए थे। मामला हाईकोर्ट तक जा पहुंचा था। सरकार से जवाब तलब हुआ। आखिरकार भारी विरोध के बीच राज्य शासन ने परसा कोल ब्लॉक को लेकर बड़ा निर्णय ले ही लिया। वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अवर सचिव के .पी.राजपूत ने परसा ओपन कास्ट कोल ब्लॉक को निरस्त करने भारत सरकार को पत्र लिखा था। इस पत्र में राज्य सरकार ने व्यापक जन विरोध और कानून व्यवस्था बिगड़ने का हवाला दिया था । वन महानिरीक्षक भारत सरकार को छत्तीसगढ सरकार की सरकार की तरफ से 31 अक्टूबर 2022 को लिखे पत्र में साफ कहा गया था कि सरगुजा के परसा ओपन कास्ट कोल माइंस को लेकर लंबे समय से विरोध चल रहा है। इस मामले में राजनीतिक और स्थानीय स्तर पर विरोध हो रहा है। पिछले कई महीनों से पेड़ों का कटाई, पर्यावरण का नुकसान होने और व्यवस्थापन संबंधी मुद्दों को लेकर स्थानीय आदिवासी विरोध जता रहे हैं। विरोध के बीच अब राजस्थान को आवंटित परसा कोल ब्लाक को राज्य सरकार ने निरस्त करने का फैसला लिया है। वन भूमि पर ओपन कोल माइंस के लिए दी गयी स्वीकृति को रद्द करें।

सत्ता परिवर्तन होते ही फोर्स लगा 3 दिनों में काट डाले हजारों पेंड , समिति का दावा आंकड़े छुपा रही प्रशासन

सरगुजा जिले में जैव विविधताओं से भरपूर हसदेव अरण्य क्षेत्र में परसा पूर्व और केते बासन (पीईकेबी) चरण -2 विस्तार कोयला खदानों के लिए सत्ता परिवर्तन होते ही बिना सूचना स्थानीय पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में करीब 500 जवान लगा आरा मशीन के साथ हजारों पेंड काट डाले गए ।
सरकारी आंकड़ों को देखें तो 15 हजार पेंड काटे जाने के दावे किए जा रहे जिसमें से विधिवत अनुमति से 8 हजार पेंड अब तक काटे जा चुके हैं ,वहीं हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक उमेश्वर सिंह आर्मो इस आंकड़े को फर्जी करार दे रहे। उनका कहना है हसदेव अरण्य क्षेत्र में करीब 2 लाख पेंड है ,अब तक घाटबर्रा में 30 हजार छोटे बड़े पेंडों की बलि दे दी गई है। स्थानीय प्रशासन सरकार फर्जी आंकड़े बता रही ,छोटे पेड़ों को गिनती में ही शामिल नहीं किया गया । इन पेड़ों को बिना अनुमति काटा गया है।

संवैधानिक लड़ाई पर सरकार, स्थानीय पुलिस प्रशासन की असंवैधानिक दमनात्मक कार्रवाई

हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक उमेश्वर सिंह आर्मो का कहना है कि उनकी लड़ाई संवैधानिक रूप से चल रही। लेकिन सरकार ,स्थानीय पुलिस प्रशासन अंसवैधानिक रूप से जनआंदोलन को कुचलने का प्रयास कर रही।अडानी के हाथों सभी बिक गए हैं। 21 दिसंबर को धरना प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे ग्रामीणों को तड़के घर से उठा लिया गया ,दिन भर थाने में रख देर रात बिना आपराधिक धाराएं लगाए छोंड़ दिया गया,यह सब आंदोलन को तोड़ने का निंदनीय प्रयास है। इस मंसूबे में न सरकार कामयाब होगी न स्थानीय पुलिस प्रशासन न प्रबंधन।

हरिहरपुर में 500 दिनों से अधिक से चल रहा प्रदर्शन जारी रहेगा ,अब एक भी पेंड काटे ,पुलिस ने ग्रामीणों को उठाया तो एनएच में बेमियादी हड़ताल

हरिहरपुर में 500 दिनों से अधिक समयावधि से हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले विरोध प्रदर्शन कर रहे ग्रामीण दमनात्मक कार्रवाई से बेहद आक्रोशित हैं। हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक उमेश्वर सिंह आर्मो का कहना है कि पीईकेबी स्टेज -2 के लिए तत्काल पेंड कटाई बंद करने ,नई खदानों की स्वीकृति निरस्त करने के लिखित आश्वासन तक उनकी लड़ाई जारी रहेगी। अब अगर सरकार ,स्थानीय पुलिस प्रशासन उनके जल ,जंगल ,जमीन बचाने के जनआंदोलन को कुचलने असंवैधानिक तरीके से दमनात्मक कार्रवाई करेगी तो वे शांत नहीं बैठने वाले। अब सीधे राष्ट्रीय राजमार्ग पर बेमियादी आंदोलन करेंगे। जिसकी जवाबदेही सरकार की होगी।

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