छत्तीसगढ़/कोरबा :- नगर पालिक निगम कोरबा के सभापति चुनाव में यह कहावत ठीक बैठ रही है कहते हैं आप अपनी ऊंची पहुंच और रुतबे से पद को खरीद सकते हैं लेकिन जनता जनार्दन के निर्णय के आगे ऊंची पहुंच और रुतबे की हवा निकल जाती है, एक तरह से कह सकते हैं की कोरबा नगर पालिक निगम के सभापति चुनाव में धन बल की हार हुई है और जनबल की जीत हुई है।
कुछ इसी प्रकार कोरबा नगर पालिक निगम के सभापति चुनाव में देखने को मिला जहां बीजेपी द्वारा सभापति के लिए अधिकृत किए गए प्रत्याशी को बीजेपी के ही पार्षदों ने ठुकरा कर दूसरे बीजेपी के ही उम्मीदवार को गले लगाते हुए जीत दिलाकर कोरबा नगर पालिक निगम की सभापति कुर्सी में बैठा दिया,
भाजपा के अनधिकृत प्रत्याशी 33 वोट पाकर जीते, बीजेपी के अधिकृत प्रत्याशी 18 वोट पाकर हारे, निर्दलीय प्रत्याशी को मिले16 वोट
दरअसल मामला कुछ इस प्रकार है कल कोरबा नगर पालिक निगम के सभापति का चुनाव होना था, जिसमें 67 पार्षदों में 45 पार्षद भाजपा से थे बावजूद इसके पार्टी द्वारा अधिकृत प्रत्याशी को बीजेपी के ही पार्षदों ने ठुकरा दिया, भाजपा के द्वारा अधिकृत प्रत्याशी के रूप में हितानंद अग्रवाल के नाम की जैसे ही घोषणा हुई तो बीजेपी के पार्षदों ने ही इस नाम का विरोध शुरू कर दिया, भारी हंगामा के बाद वोटिंग के द्वारा चुनाव संपन्न कराया गया जिसमें खुद भाजपा द्वारा अधिकृत प्रत्याशी हितानंद अग्रवाल व भाजपा के ही नवनिर्वाचित पार्षद नूतन सिंह ठाकुर, निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल कर पार्षद बने अब्दुल रहमान ने सभापति पद के लिए नामांकन दाखिल किया इस त्रिकोणी मुकाबले में भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी हितानंद अग्रवाल को 18 वोट मिले और हार गए वहीं भाजपा के अनधिकृत प्रत्याशी नूतन सिंह ठाकुर को 33 वोट मिले और वह जीत दर्ज करते हुए सभापति की कुर्सी में 5 वर्ष के लिए बैठ गए, वहीं निर्दलीय पार्षद प्रत्याशी अब्दुल रहमान को 16 वोट मिले जो भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी से दो वोटो का कम अंतर था, भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी के हार और भाजपा के अनधिकृत प्रत्याशी के जीत के बाद आरोप प्रत्यारोप का दौर चालू हो गया है, अब सवाल उठता है दोषी कौन ? संगठन या संगठन के वह निर्णायक मंडली जो पार्षद हितानंद अग्रवाल को अधिकृत प्रत्याशी बनाया था या फिर वह पार्षद जिन्होंने भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी को वोट न देकर भाजपा के ही अनाधिकृत प्रत्याशी को जीत दिलाई,
सभापति के इस चुनाव में धनबल की हार जन बल की जीत, दोषी कौन ? संगठन के वह चेहरे जिन्होंने अधिकृत प्रत्याशी के चेहरे को चुनने में चूक की या फिर भाजपा के वह पार्षद जिन्होंने बीजेपी के अनधिकृत प्रत्याशी को चुनकर जीत दिलाई
अब सवाल यह उठता है कि भाजपा का अधिकृत प्रत्याशी हारा और भाजपा का ही अनाधिकृत प्रत्याशी जीता तो इसमें दोषी कौन बिना पार्षदों की सहमति के अधिकृत प्रत्याशी घोषित करने वाले या वाला संगठन या फिर निर्दलीय प्रत्याशी को ना जिता कर भाजपा पार्षदों ने भाजपा के अनधिकृत प्रत्याशी को जिताया, कुल मिलाकर संगठन और संगठन के वह चेहरे जिन्होंने बिना पार्षदों के सहमति के पार्षद हितानंद अग्रवाल को भाजपा के सभापति के लिए अधिकृत प्रत्याशी चुना, और अपनी गलती को नजर अंदाज करते हुए कुल ठीकरा क्रॉस वोटिंग डालकर अनाधिकृत भाजपा प्रत्याशी को जीत दिलाने वाले पार्षदों पर फोड़ रहे हैं, जबकि भाजपा पार्षद तब दोषी होते जब उन्होंने भाजपा के पार्षद प्रत्याशी को ना जिताकर निर्दलीय प्रत्याशी को जिताते, जबकि भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी भाजपा के पार्षदों को स्वीकार न होने पर संगठन ने चुनाव करवाया त्रिकोणी मुकाबला होने के बावजूद भी भाजपा के पार्षदों ने भाजपा के ही प्रत्याशी को जिताया, और संगठन के निर्णय को अपने बहुमत से ठुकराया इस तरह पार्षदों ने मिसाल पेश करते हुए एक संदेश दिया कि धनबल कितना भी ताकतवर हो जन बल के आगे फेल है,
कार्यवाही किस पर धनबल या जनबल पर, या अपनी खामियों छुपाने की कोशिश
वही कोरबा भाजपा जिला अध्यक्ष मनोज शर्मा दोषियों पर कार्यवाही की भी बात कर रहे हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि दोषी कौन ??? अब संगठन अपनी गलती का ठीकरा पार्षदों पर मढना चाह रहा है जबकि इस रोचक सभापति के चुनाव ने यह सिद्ध कर दिया कि ऊंची पहुंच और रुतबे से खरीदी हुई चीज काम नहीं आती, लोगों के दिलों को जीतने से जीत मिलती है ।