छत्तीसगढ़/कोरबा :- कोरबा जिले में सिटी बसों का बुरा हाल है रमन सरकार के कार्यकाल में शुरू हुई यात्रियों के सुविधा के लिए 48 सिटी बसें जिसमें से 8 एसी सिटी बस और 40 नॉन एसी बस जिले में अलग-अलग रूटो में संचालित हो रही थी लेकिन जब से अर्बन कंपनी द्वारा सिटी बसों से अपना नियंत्रण हटाया गया है तब से सिटी बसों को मेंटेनेंस के अभाव में जर्जर बताया जा रहा है, जबकि प्रेजेंट में कोरबा जिले मे जिस ठेकेदार ने सिटी बसों के संचालन के लिए टेंडर लिया है उसने सिटी बसों को कबाड़ बताते हुए अपना निजी स्वार्थ सिद्ध करते हुए यात्रियों के सुविधा को दरकिनार करते हुए निजी कंपनियों में सिटी बसों को लगाया गया है सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार किसी प्रशांत तिवारी ने कोरबा जिले में सिटी बसों के संचालन की जिम्मेदारी ली है लेकिन जब से यह जिम्मेदारी उनके द्वारा ली गई है तब से इन सिटी बसों को जर्जर बताते हुए खड़ा कर दिया गया है और उसी परमिट में प्राइवेट बसें चलाई जा रही है या तो उन सिटी बसों को निजी औद्योगिक संस्थानों के कर्मचारियों के लाने ले जाने के लिए प्रयोग किया जा रहा है जिसमें ठेकेदार को लाखों रुपए अवैध तरीके से हर माह कमाई हो रही है, और शासन को लाखों रुपए का हर माह नुकसान हो रहा है, वही ठेकेदार द्वारा किसी व्यक्ति को टेंडर देकर सिटी बसों के परमिट पर दूसरी बसें चलाई जा रही है और अवैध वसूली की जानकारी मिल रही है, जिससे शासन को करोड़ों का नुकसान हो रहा है , जरूरत है संबंधित विभागों को जानकारी लेते हुए कार्यवाही करने की जिससे यात्रियों को सुगम यात्रा के साथ-साथ कम पैसे में यात्रा हो सके । सूत्रों की माने तो 48 बसों में से यात्रियों के सुविधा के लिए मात्र चार बसें ही सड़कों में दौड़ रही है बाकी बसों को या तो कंडम बताते हुए औद्योगिक कर्मचारियों के लाने ले जाने में लगाया गया है या फिर उन्हें कंडम बताते हुए खड़ा कर उस परमिट के नाम से प्राइवेट बसें चलाई जा रही है l सूत्रों से यह भी जानकारी मिली है इस ठेकेदार के ऊपर एक सफेद पोश का संरक्षण प्राप्त है जिसके कारण अधिकारी भी इस ठेकेदार पर कार्यवाही करने से बच रहे हैं, तो क्या सवाल उठता है क्या कोरबा जिले के यात्री सफेद पोश और ठेकेदार के सेटिंग में दोषी हैं जिन्हें शासन द्वारा मुहैया कराई गई सुविधा नहीं मिल पा रही है । प्राप्त जानकारी के अनुसार सिटी बसों को सड़कों पर चलाने के लिए 10 वर्ष की आयु सीमा रखी गई है जबकि प्राइवेट बसों को 15 वर्ष बावजूद इसके सिटी बसों को 5 से 6 वर्ष की अवधि में कंडम बताते हुए सरकार और यात्रियों के साथ कांट्रेक्टर द्वारा धोखा दिया जा रहा है ।