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आखिर क्यों नहीं बन पा रहा ‘प्रदूषण’ चुनावी मुद्दा, वर्ष 2018 में कोरबा एक्शन प्लान बनाया या था, और कई योजनाएं बनी सब फेल

 कोरबा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए प्रशासन ने शासन के निर्देश पर कई सारी योजनाएं बनाई लेकिन कोई भी योजना धरातल पर नहीं उतर सकी

छत्तीसगढ़/कोरबा :-  लोकसभा चुनाव  2024 सिर पर है। निर्वाचन आयोग तैयारियों को पुख्ता करने में लगा हुआ है। प्रत्याशी और पार्टी मतदाताओं (Voters) को रिझाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है। लेकिन कोरबा के लिए बेहद महत्वपूर्ण समस्या प्रदूषण मुद्दा नहीं बन पा रहा है। यह स्थिति तब है जब एशिया की सबसे बड़ी कोयला खदान के रूप में गेवरा प्रोजेक्ट को विकसित किया जा रहा है। इसके अलावा शहर में बड़े-बड़े थर्मल पॉवर प्लांट से निकलने वाला डस्ट लोगों की समस्या को बढ़ा रहा है। कोरबा की हवा में घुलने वाली कोयले की डस्ट और राखड़ यहां की प्रमुख समस्या है लेकिन यह मुद्दा नहीं बन पा रही है।

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पूर्व में कोरबा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए प्रशासन ने शासन के निर्देश पर कई सारी योजनाएं बनाई लेकिन कोई भी योजना धरातल पर नहीं उतर सकी। वर्ष 2018 में कोरबा एक्शन प्लान बनाया या था। इसके तहत आईआईटी मुंबई की टीम ने 6 बिंदुओं पर अपना निष्कर्ष निकाला था। इसमें कोरबा को प्रदूषण मुक्त बनाने की बातें कही गई थी। हवा के रूख को देखकर प्रदूषण को नियंत्रित करने का सपना दिखाया गया था लेकिन यह कारगर नहीं हो सका था। 2024-25 के तहत प्रदूषण को कम करने की योजना है। 3 लाख से 10 लाख तक की आबादी वाले शहर में कोरबा भी शामिल है। कोरबा की हवा को शुद्ध करने के लिए सरकार की ओर से जो मापदंड बनाई गई थी उसके तहत 24-25 तक कोरबा की वायु प्रदूषण में कम लाना था। प्रदूषण कम करने के लिए केंद्र सरकार ने अलग-अलग मौके पर कोरबा को लगभग तीन करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता राशि प्रदान की है।
इसके तहत 2020-21 में एक करोड़ा, 2022-23 में 1 करोड़ 94 लाख रुपए मिले थे। इन पैसों से मशीनों की खरीदी की गई थी। इसमें सड़कों की साफ-सफाई प्रमुख था। यह मशीन नगर निगम की ओर से खरीदी गई। यह मशीन निगम के वर्कशॉप में खड़ी है लेकिन आजकल शहर की सड़काें पर दिखाई नहीं दे रही है। इसके पीछे बड़ा कारण मशीन संचालन में इस्तेमाल होने वाला डीजल को बताया जा रहा है। मशीन के चलने पर डीजल अधिक जलता है। इस कारण नगर निगम के अफसर इस मशीन को रोजाना निगम की सड़कों पर साफ-सफाई के लिए नहीं उतारते हैं। कोरबा शहर में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण कोयला दहन भी है। सुबह-शाम रोजाना स्लम बस्तियों में कोयले के इस्तेमाल से लोग खाना पकाते हैं। इसे कम करने के लिए प्रशासन की ओर से बहुत पहले स्मोकलेस कोरबा अभियान चलाया गया था, इस पर कुछ पैसे भी खर्च किये गए थे लेकिन अभियान सफल् नहीं हुआ।

गेवरा-दीपका और कुसमुंडा में कोयला परिवहन से लोगों का घुंट रहा दम, पानी का भी छिड़काव नहीं

कोरबा शहर के साथ-साथ उपनगरीय इलाकों में भी वायु प्रदूषण की समस्या गंभीर रूप ले रही है। खदानों में जैसे-जैसे कोयले का उत्पादन बढ़ रहा है। वैसे-वैसे प्रदूषण का स्तर भी बढ़ता जा रहा है। गेवरा-दीपका में हालात इतने गंभीर हैं कि दिन भर शहर के उपर कोल डस्ट दिखाई देता है। कई बार केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड की ओर से लगाई गई मशीनों ने भी गेवरा में प्रदूषण के स्तर को बेहद खतरनाक बताया है। बावजूद इसके इस क्षेत्र में प्रदूषण की रोकथाम को लेकर कोयला कंपनी का प्रबंधन गंभीर नहीं है।
इसके अतिरिक्त कुसमुंडा में भी दिन-प्रतिदिन प्रदूषण की समस्या गंभीर हो रही है। इमलीछापर चौक से लेकर कुसमुंडा थाना तक 24 घंटे कोयला परिवहन का दबाव है। इन गाड़ियों के चलने से कोयले की डस्ट आसपास के क्षेत्रों में उड़ रही है। इसका सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। स्थिति इतनी बिगड़ रही है कि कई लोगों को सांस से संबंधित बीमारियां भी हो रही है। मगर प्रदूषण राजनीतिक दलों के लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं बन रहा है। आरोप-प्रत्यारोप तक ही राजनीति सिमट रही है।

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