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हल्दीबाजार में खदान विस्तार सर्वे पर ग्रामीणों का विरोध — तीन घंटे ठप रहा खदान संचालन, विधायक की मौजूदगी में हुई त्रिपक्षीय वार्ता

छत्तीसगढ़कोरबा :- दीपका परियोजना के विस्तार के तहत अधिग्रहित किए गए हल्दीबाजार गांव में बुधवार को उस वक्त माहौल गरम हो गया जब जिला प्रशासन और एसईसीएल (SECL) की संयुक्त टीम सर्वे कार्य के लिए मौके पर पहुंची। जैसे ही परिसंपत्ति सर्वे की शुरुआत हुई, ग्रामीणों ने तीव्र विरोध दर्ज कराते हुए खदान परिसर में प्रवेश कर लिया। ग्रामीणों का गुस्सा इस कदर बढ़ा कि करीब तीन घंटे तक खदान संचालन पूरी तरह ठप रहा। करीब 200 से अधिक ग्रामीणों ने खदान के भीतर पहुंचकर सर्वे रोकने और अपने लंबित मुद्दों पर पहले सुनवाई की मांग की।     

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विधायक ने संभाली कमान, तीन पक्षों के बीच हुई वार्ता

विरोध की सूचना मिलते ही क्षेत्रीय विधायक प्रेमचंद पटेल मौके पर पहुंचे। उन्होंने स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए तत्काल त्रिपक्षीय वार्ता बुलाई, जिसमें ग्रामीण प्रतिनिधियों के साथ अपर कलेक्टर मनोज बंजारे, एसडीएम रोहित सिंह और एसईसीएल अधिकारी मौजूद रहे।

बैठक में ग्रामीणों ने कहा कि जब तक सर्वे सूची, रोजगार सूची और पत्रक जारी करने जैसे मुद्दों का समाधान नहीं होता, तब तक किसी भी प्रकार का सर्वे नहीं किया जाए।
विधायक की मौजूदगी में अधिकारियों ने ग्रामीणों की मांगें सुनीं और सर्वे कार्य को फिलहाल रोकने का निर्णय लिया। प्रशासन ने अगली बैठक में समस्याओं के निराकरण का आश्वासन भी दिया।

विरोध के बीच 23 परिसंपत्तियों का सर्वे पूरा

हालांकि इस विरोध के बीच भी प्रशासनिक टीम और एसईसीएल कर्मियों ने करीब 23 लोगों की संपत्ति एवं परिसंपत्ति का सर्वे कार्य पूरा कर लिया। यह कार्य सुरक्षा घेराबंदी में किया गया।

एसईसीएल ने की शिकायत दर्ज

इधर, सर्वे विरोध के दौरान लगभग 200 ग्रामीणों के खदान परिसर में अनाधिकृत प्रवेश करने की घटना को गंभीर मानते हुए एसईसीएल प्रबंधन ने गांव के सरपंच अजय दुबे और अनिल टंडन के खिलाफ थाना दीपका में शिकायत दर्ज कराई है।

बता दे कि दीपका क्षेत्र में खदान विस्तार का सर्वे लंबे समय से विवादों में है। ग्रामीणों का कहना है कि पुनर्वास, मुआवजा, रोजगार और सूची प्रकाशन जैसी कई मांगें अभी अधूरी हैं, जबकि एसईसीएल प्रबंधन का तर्क है कि विस्तार परियोजना में देरी से उत्पादन पर असर पड़ रहा है।

हल्दीबाजार में हुए इस विरोध ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि विकास परियोजनाओं की आड़ में प्रभावितों की सहमति और समाधान प्रक्रिया कितनी कारगर है। प्रशासन ने फिलहाल माहौल शांत तो कर दिया है, लेकिन जब तक ग्रामीणों की मुख्य मांगों पर ठोस कदम नहीं उठाए जाते, तब तक यह विवाद दोबारा भड़कने की आशंका बनी रहेगी।

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