HomeBreaking Newsयह एक मोड़ ही नहीं.. उतार-चढ़ाव के बीच मिठास भी है...118साल की...

यह एक मोड़ ही नहीं.. उतार-चढ़ाव के बीच मिठास भी है…118साल की शिवमूर्ति अब बेबस है…

छत्तीसगढ़/कोरबा :- कहते हैं जिंदगी जिंदादिली का नाम है, और यह जिंदादिली हर किसी के जिंदगी में तब तक शामिल नहीं हो पाता जब तक कोई जिंदगी को इसी गहराइयों से, संघर्षों से नहीं जीता..। जिंदगी में उतार-चढ़ाव और मोड़ भी है, जिससे होकर गुजरने पर मंजिले या मुकाम, पहचान मिलती है….कुछ ऐसी ही कहानी 118 साल की शिवमूर्ति की भी है। इनकी जिंदगी के उतार-चढ़ाव और मोड़ को भले ही मैं न तो जान पाया और न ही समझ पाया लेकिन जहाँ वह रहती है उसे मैंने कई बार देखा है, उस राह में गुजरते वक़्त मुझे उतार (ढलान) और आते वक्त चढ़ाव के साथ मोड़ का सामना करना पड़ता है। अगर वक़्त की बेबसी न हो तो निःसंकोच मैं मोड़ पर ठहर जाता हूँ, शायद मुझे यह मोड़ मजबूर करती है..क्योंकि यह सिर्फ मोड़ ही नहीं है, उतार-चढ़ाव के बीच एक मिठास भी है, ठहराव का सुकून है और फिर कभी लौट के आने पर यहाँ पल भर ठहर जाने का संकल्प भी है।
कोरबा शहर से लगभग 65 किलोमीटर दूर कटघोरा से अम्बिकापुर सड़क पर गाँव मड़ई है। यह मड़ई गाँव भले ही कोरबा जिले की पहचान है लेकिन इसी गांव की शिवमूर्ति भी है जो सिर्फ कोरबा जिले की ही पहचान न होकर यहाँ से होकर गुजरने वाले अन्य जिले और प्रदेशों के लोगों के लिए भी पहचान बन गई है। उनकी बेटी के बताए अनुसार वह अब 118 साल की हो गई है। झुर्रियों के साथ शरीर बेबस है। बहुत कम बोलती है, बहुत कम खाती है। आसपास क्या हो रहा है,यह भी शायद अपने ही आँखों से खुद ही देखती और समझती है।       
अपनी पहचान बनाकर सबसे अनजान हुई शिवमूर्ति यादव ने लगभग 60 साल पहले मड़ई गाँव के एक मोड़ पर चाय-नाश्ते की दुकान सजाना शुरू किया था। तब यहाँ घने जंगल भी थे। यह मोड़ एक तरफ से उतराव तो दूसरे छोर से चढ़ाव का हिस्सा था, भले ही यह चढ़ाव का हिस्सा, स्तर अब नेशनल हाइवे बनने से कम हो गया है, लेकिन पहले इस चढ़ाव में अक्सर कई बड़ी वाहने फंस जाया करती थी। उस दौर में बहुत कम गाड़ियों की आवाजाही के बीच लम्बे दिनों तक फसे गाड़ियों वालों के लिए शिवमूर्ति मददगार के रुप में काम आती थी। उसके छोटे से होटल का चाय नाश्ता सबके काम आता था। सिर्फ चाय नाश्ते से ही जब जीवनयापन के लिए पैसों का बंदोबस्त नहीं हुआ तो शिवमूर्ति ने मिठाइयों पर भी हाथ आजमाया। आसपास गांववासियों से दूध इकट्ठा किए और मलाई निकालने के साथ पेड़े भी बनाने लगी। बड़े चूल्हों में भट्ठी की आँच को सहन करती हुई घण्टो तक कड़ाही में खौलते हुए दूध पर करछुल चलाती हुई शिवमूर्ति यहां हर आने जाने वालों को नज़र आने लगी। एक तरफ मोड़ और चढ़ाव पर गाड़ियां ठहरती रही,दूसरी ओर शिवमूर्ति के होटल में बनने वाले पेड़े और बालूशाही की मिठास फसे हुए वाहन चालकों के राहत के साथ दूर-दूर तक पहुँचती रही। यहाँ बनने वाले पेड़े और बालूशाही के स्वाद ने धीरे-धीरे सबको अपनी ओर खींचा और एक ऐसा समय भी आया कि जब बहुत ज्यादा चढ़ाव वाले इस मोड़ को काटकर कम किया गया, तब सड़को पर सरपट से भागने वाले लोग मड़ई गाँव के इस मोड़ पर शिवमूर्ति के छोटे से होटल पर शुद्ध पेड़े का स्वाद लेना और अपनी जान पहचान वालों के लिए भी ले जाना नहीं भूलते..अब भले ही शिवमूर्ति बेबस है, खाट पर है ..और मोड़ पर उनकी ज़िंदगी भी ढलान पर है। सड़कों पर फसकर मुसीबत झेलने वालों के लिए शिवमूर्ति ने सुनसान इलाके में उतार-चढ़ाव और अंधे मोड़ पर राहत बनने का काम किया है, मुसीबत से घिरे लोगो के मन में मिठास घोलने का काम किया है वह अब उनकी बेटी भी कर रही है…हमारी आपसे भी यहीं अपेक्षा है कि मोड़ और उतार चढ़ाव से घबराए नहीं, मुसीबतों में किसी का मददगार जरूर बने.उपकार और किसी के मुँह में मिठास घोलने से आप दीर्घायु तक सुकून महसूस करेंगे… (कमल ज्योति)

Must Read