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कोरबा जिले में राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों की हालत बद से बदतर, इस गांव में 12 साल बाद भी ना एक भी शौचालय बने ना प्रधानमंत्री आवास, संरक्षित पहाड़ी कोरवा जनजाति आदिवासी परिवार इस कड़कड़ाती ठंड में भी घरों में पन्नी छाकर जीने पर मजबूर, मुख्यधारा से कोसों दूर

छत्तीसगढ़/कोरबा :- कोरबा जिले में राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पहाड़ी कोरवा जनजाति आदिवासी परिवारों की हालत बद से बदतर है इस गांव में रह रहे लगभग एक दर्जन से ज्यादा परिवार मुख्यधारा से कोसों दूर हैं 12 साल बाद भी इस गांव मे अभी तक ना शौचालय बनाए गए ना प्रधानमंत्री आवास यहां रहने वाले संरक्षित जनजाति पहाड़ी कोरबा के लोग इस कड़कड़ाती धूप में भी घरों के ऊपर पन्नी छा कर जिंदगी जीने पर मजबूर है यहां के आदिवासी परिवारों को आज तक केंद्र एवं राज्य से चलाई जाने वाली योजनाओं का लाभ नहीं मिला है ऐसा लगता है अधिकारी केवल ऑफिस में बैठकर शासन की योजना चला रहे हैं और कागजों में इन आदिवासी परिवारों को लाभ दिया जा रहा है जबकि धरातल पर इनकी स्थिति आज के आधुनिक युग में बद से बदतर यह लोग बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, इंटरनेट आदि मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर है जबकि इनके उत्थान के लिए आदिवासी विकास बनाया गया है जहां हर वर्ष इनके जीवन स्तर को उठाने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों से करोड़ों का फंड आता है लेकिन शायद या फंड कागजों में ही खर्च हो जा रहा है ।

एक ओर छत्तीसगढ़ के मुखिया भूपेश बघेल ग्रामीणों और आदिवासियों का जीवन स्तर उठाने के लिए अनेक योजनाएं चला रहे हैं सरकार की महत्वकांक्षी योजना नरवा गरवा घुरवा बाड़ी के माध्यम से लोगों को आत्मनिर्भर बनाने और प्राचीन सभ्यता को संजोए रखने के लिए प्रयासरत है लेकिन कोरबा मैं शासन की ऐसी महत्वकांक्षी योजनाओं और संरक्षित जनजाति पहाड़ी कोरवा आदिवासी परिवारों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए चलाई जाने वाली सभी योजनाएं धरातल तक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ रही हैं । अधिकारियों की अनदेखी के कारण सरपंच सचिव जिनकी गांव में मानिटरिंग कर शासन प्रशासन को जानकारी देना है वह भी मनमानी कर रहे हैं ।

कोरबा जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर घनघोर पहाड़ियों के बीच बसा जनपद पंचायत कोरबा अंतर्गत आने वाले लेमरू ग्राम पंचायत का आश्रित गांव भूडू माटी जहां आज भी इस आधुनिक युग में राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पहाड़ी कोरबा संरक्षित जनजाति घरों में पन्नी छाकर जिंदगी जीने पर मजबूर हैं वही इस कड़कड़ाती ठंड से बचने के लिए दिन रात आग का सहारा लेकर जिंदगी की नैया पार करने की जद्दोजहद कर रहे हैं इस गांव के एक बुजुर्ग आंधी राम से हमारी मुलाकात हुई उन्होंने बताया कि हमें इस गांव में 12 साल रहते हो गया है लेकिन आज तक यहां हमारी सुध लेने वाला कोई नहीं पहुंचा ना हमारे यहां शासन के स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय बनाए गए और ना ही हमें प्रधानमंत्री आवास मिला रोजगार के लिए कोई साधन भी नहीं है जंगली खानपान के सहारे जीवन काट रहा है पैसों की कमी के कारण घरों में पन्नी डालकर जीवन की नैया पार करने के लिए मजबूर हैं जंगल में भालू जैसे जानवरों का भी खतरा बना रहता है जिसके लिए दिन रात आग के सहारे रहना पड़ता है स्कूल ना होने के कारण यहां के बच्चे स्कूल नहीं जा पाते बीमार पड़ने पर बहुत परेशानी होती है 16 किलोमीटर पैदल चलकर या फिर किसी राहगीर से मदद मांग कर हॉस्पिटल तक पहुंचते हैं गरीबी के कारण ना हमारे पास मोबाइल है ना यहां नेटवर्क । सरपंच सचिव भी देखने तक नहीं आते ।

राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पहाड़ी कोरबा संरक्षित जनजाति के लोगों को मूलभूत सुविधाओं से जोड़ने शासन लगातार प्रयास कर रहा है जिले में इनका जीवन स्तर उठाने हर वर्ष करोड़ों का फंड भी आता है कई एनजीओ इस पर कार्य भी कर रहे हैं लेकिन शायद सब कागजों में सिमट कर रह जा रहा है इनको आज भी जिम्मेदार अधिकारी मुख्यधारा से जोड़ने में नाकाम हैं । राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र आज भी ऊपर वाले के सहारे जिंदगी जीने पर मजबूर हैं जरूरत है शासन प्रशासन को कठोर निर्णय लेने की जिससे इन परिवारों मुख्यधारा से जोड़कर इनके चेहरे पर खुशियां लाई जा सके ।

सार बहार ग्राम के एक आश्रित गांव की दो बेटियां पिछले 15 वर्षों से स्वास्थ सुविधा के अभाव में जमीन पर लेटी जिंदगी की जंग लड़ रही थी, मीडिया में खबर प्रकाशन के बाद प्रशासन ने दोनों बच्चियों को हॉस्पिटल में भर्ती कराया इलाज जारी

आपको बता दें कि लेमरू ग्राम पंचायत के आश्रित गांव सार बाहर की राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले संरक्षित जनजाति पहाड़ी कोरवाओं की दो बेटियां अधिकारियों और पंचायत की अनदेखी और स्वास्थ सुविधाओं के कारण पिछले 15 वर्षों से जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही थी जिसे सुर्खियां न्यूज़ की टीम ने धरातल पर पहुंचकर प्रमुखता से उठाया था जिसके बाद प्रशासन हरकत में आया और दोनों बच्चियों को अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उनका इलाज जारी है ।

आपको बता दें कि लेमरू ग्राम पंचायत के आश्रित गांव सार बाहर जो दुर्गम पहाड़ी एरिया में बसा हुआ है यहां पहुंचने के लिए सड़क भी नहीं है घनघोर जंगल के बीच से मुख्य रोड से लगभग 7 किलोमीटर पैदल चलकर प्राकृतिक नाले को पारकर इस गांव तक पहुंचा जाता है इस गांव में 17 राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र निवास करते हैं जिसमें से एक परिवार टिकैत राम का भी है जिसके पांच बेटे हैं और दो बेटियां हैं पांच बेटों में दो बेटे गरीबी के कारण पलायन कर चुके हैं वही दो बेटियां जिनकी उम्र 15 वर्ष और 18 वर्ष हो चुकी है लेकिन दिखने में यह 5 साल की बच्चियां दिखती है टिकैत राम ने बताया कि मेरी दोनों बेटियां कक्षा दो और कक्षा 3 में पढ़ती थी लेकिन अचानक 1 दिन बुखार आया और वह गिर पड़ी जो आज तक नहीं उठ पाई अब बड़ी बेटी की उम्र 18 वर्ष और छोटी बेटी की उम्र 15 वर्ष हो गई है लेकिन दिखने में यह 5 साल की बच्ची दिखती है इनका शारीरिक और मानसिक विकास रुक चुका है संसाधनों की कमी और गरीबी व पहुंच विहीन मार्ग होने के कारण टिकैत राम बीते 15 वर्षों से बच्चियों का इलाज झाड़-फूंक और जड़ी बूटियों से कराता रहा जिन की सुध लेने प्रशासन का कोई अधिकारी 15 वर्षों तक नहीं पहुंच पाया मीडिया में खबरें आने के बाद प्रशासन हरकत में आया और उन्हें अस्पताल में दाखिल कराया गया जहां इलाज जारी है । बच्चियों का पिता टिकैत राम भी 1 वर्ष पूर्व पैर में लोहा लगने के कारण उचित स्वास्थ्य सुविधा न मिलने के कारण घुट घुट कर जिंदगी जीने पर मजबूर था उसके पैर में इन्फेक्शन फैल गया था ।

गांव में बिजली पानी सड़क इंटरनेट सुविधा शौचालय प्रधानमंत्री आवास जैसे मूल भूत सुविधाओं की कमी, गरीबी और बेबसी का आलम

इस गांव में गांव तक पहुंचने के लिए लगभग 7 किलोमीटर पैदल जंगल के बीच से पगडंडी के रास्ते से प्राकृतिक नाला पार करते हुए पहुंचना पड़ता है इस गांव को आज तक सड़क मार्ग से नहीं जोड़ा जा सका है इसके साथ साथ यहां शासन की योजनाएं नहीं पहुंच पाई है मूलभूत सुविधाओं की कमी है जिसमें स्वच्छ भारत मिशन के तहत बनाए गए शौचालय, प्रधानमंत्री आवास, नहीं बनाई गई वही इस गांव में आज तक बिजली नहीं पहुंच पाई है इलाज के लोगों को 20 किलोमीटर दूर पैदल जाना पड़ता है गरीबी और बेबसी का आलम ।

कहने को तो यह राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र हैं और यह अति पिछड़ी संरक्षित जनजाति पहाड़ी कोरवा हैं जिन को मुख्यधारा से जोड़ने इनके जीवन स्तर को उठाने हर वर्ष जिले में करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं बावजूद इसके धरातल की तस्वीरें और हालात यह बताने के लिए काफी है कि इनके उत्थान के लिए खर्च किया जा रहा पैसा कितना और कहां तक पहुंच रहा है अधिकारियों के कमीशन खोरी और अनदेखी के कारण पंचायत के सरपंच सचिव भी लापरवाह बने हुए हैं यही कारण है कि आज भी इस संरक्षित जनजाति के लोगों को शासन की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है और प्रशासन इनको मुख्यधारा से जोड़ने और इनको मूलभूत सुविधाएं देने में नाकाम है ।

कृषि विभाग उद्यानिकी विभाग भी इन्हें शासन की योजनाओं का लाभ नहीं दे पाए

भूपेश सरकार जहां आपका जीवन स्तर सुधारने शासन की महत्वकांक्षी योजना नरवा गरवा घुरवा बाड़ी के तहत योजना चला रही है गांव में जानवरों के लिए गौठान बनाए गए जिसके माध्यम से ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन इन विभागों की अनदेखी के कारण आज भी पहाड़ी कोरवा शासन की योजनाओं से वंचित है गरीबी का ऐसा आलम है कि यह अपनी भूख प्राकृतिक जंगल में मिलने वाली वस्तुओं से भर रहे हैं प्राकृतिक नाले का पानी पी रहे हैं आज भी यह लोग कृषि कार्य करना नहीं जानते जानवरों को पालना नहीं जानते उद्यान विभाग द्वारा मिलने वाले लाभ से अनभिज्ञ हैं कहीं नहीं कहीं ऐसे विभागों में बैठे अधिकारियों के कारण आज राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों की भुखमरी गरीबी से ऐसी हालत है की इनके अस्तर से जीवन जीने की कल्पना मात्र से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं फिर भी यह बेचारे भोले भाले आदिवासी बेबसी और लाचारी भरी जिंदगी में जिंदगी जीने पर मजबूर हैं ।

कलेक्टर ने सात दिवस के भीतर अति पिछड़ी जनजाति के लोगों की वर्तमान स्थिति की जानकारी देने अधिकारियों को निर्देश दिए

कोरबा कलेक्टर श्रीमती रानू साहू ने सार बहार की दो पुत्रियों की खबर मीडिया में आने के बाद अधिकारियों की वर्चुअल मीटिंग करते हुए सात दिवस के भीतर संबंधित विभागों को अति पिछड़ी जनजाति के लोगों की स्थिति का जायजा लेकर रिपोर्ट प्रस्तुत करने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं ।

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