छत्तीसगढ़/कोरबा :- 30 जून को केंद्रीय कोयला राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे के दीपका क्षेत्र आगमन ने एक ओर जहां कोरबा के कोयलांचल क्षेत्र को केंद्र की नजरों में लाने का अवसर दिया, वहीं दूसरी ओर एसईसीएल (SECL) की प्रबंधन व्यवस्था और ‘सजावट’ की आड़ में छिपाए गए ‘काले सच’ ने कई गंभीर सवाल भी खड़े कर दिए हैं। दो किलोमीटर तक सड़क के दोनों ओर लगाए गए सैकड़ों पर्दों ने न सिर्फ सच्चाई को छुपाने की कोशिश की, बल्कि इसी दिखावे के कारण एक पूर्व अधिकारी गंभीर रूप से घायल भी हो गया।
लगभग 3 किलोमीटर तक फैला पर्दा, क्या छिपाना चाहता था SECL प्रबंधन
मंत्री के स्वागत की तैयारियों में SECL प्रबंधन ने कुछ ऐसा किया, जो शायद पहले कभी नहीं देखा गया था। दीपका क्षेत्र में मंत्री जी के गुजरने वाले मार्ग पर दोनों ओर बड़े-बड़े पर्दे (कनात) लगा दिए गए। इनका मकसद था—मंत्री को सिर्फ साफ-सुथरी, सुनियोजित छवि दिखाना। पर सवाल यह उठता है कि पर्दों के पीछे आखिर छिपाया क्या गया?
स्थानीय लोग बताते हैं कि इन पर्दों के पीछे वर्षों से उपेक्षा झेलते विस्थापितों की दुर्दशा, अव्यवस्थित कॉलोनियां, धूल-धुआं और खस्ताहाल सड़कें छुपाई गईं। यह वही ‘सच’ है जिससे रोज कोयलांचल का आम नागरिक जूझता है। क्या मंत्री को यह सब नहीं दिखाया जाना चाहिए था? क्या अधिकारियों ने उन्हें गुमराह किया?
विस्थापन पर दिखावा, ज़मीनी हालात से इनकार
मंत्री दुबे ने कहा कि “विस्थापन एक बड़ी समस्या है, लेकिन राज्य सरकार और SECL इसमें अच्छा काम कर रही है।” लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल उलट है।
हाल ही में ग्राम जटराज और मलगांव में SECL की परियोजनाओं के लिए बिना पुनर्वास या मुआवज़ा दिए लोगों को उजाड़ दिया गया। कई परिवार आज भी बेघर हैं। सवाल है—क्या यह वही ‘अच्छा कार्य’ है, जिसे मंत्री के सामने पेश किया गया?
घायल हुआ पूर्व अधिकारी, टूटा घुटना
सिर्फ पर्दे लगाने से सच्चाई नहीं छुपी, बल्कि इस अव्यवस्थित व्यवस्था के कारण पूर्व SECL अधिकारी डीपी यादव गंभीर रूप से घायल हो गए।
जानकारी के अनुसार तेज हवा से उड़कर एक भारी पर्दा उनकी बाइक पर गिरा, जिससे वे सड़क पर गिर पड़े। अस्पताल में जांच के बाद पता चला कि उनका घुटना टूट गया और तत्काल ऑपरेशन की आवश्यकता है। एक अन्य कर्मचारी को भी चोटें आई हैं। इस हादसे ने SECL की ‘दिखावटी व्यवस्थाओं’ की पोल खोल दी है। आखिर किसके आदेश पर यह खतनाक सजावट मे लाखों रुपए बर्बाद किए गए और क्या इस दुर्घटना की जवाबदेही तय होगी?
गंभीर सवाल, जिनका जवाब अभी बाकी है
1. क्या मंत्री को जानबूझकर सच्चाई से दूर रखा गया?
2. पर्दों के पीछे आखिर कौन सा ‘काला सच’ छुपाया गया?
3. विस्थापितों को बिना पुनर्वास उजाड़ना किस नीति का हिस्सा है?
4. पूर्व अधिकारी के हादसे पर SECL किसे जिम्मेदार मानेगा?
SECL का यह ‘सजावट कांड’ अब केवल व्यवस्थागत चूक नहीं रह गया है, बल्कि यह एक बड़ा सवाल बनकर खड़ा है—क्या देश के मंत्री तक को सिर्फ ‘दिखावा’ दिखाया जाएगा और सच्चाई पर पर्दा डाला जाएगा? और यदि ऐसा है, तो आम नागरिक और भूविस्थापितों की सुनवाई की उम्मीद किससे की जाए? “सच को पर्दों में नहीं छुपाया जा सकता, क्योंकि अंततः वह सामने आ ही जाता है।”