छत्तीसगढ़/कोरबा :- एसईसीएल दीपिका, गेवरा, कुसमुंडा, कोरबा कोयला खदान को निर्धारित क्षेत्र से अधिक और निर्धारित उत्पादन से अधिक के उत्पादन पर 8,000 (आठ हजार )करोड़ रुपए की पेनल्टी लगाई गई है जो बकाया है जिसे न एसईसीएल शासन के खजाने में जमा कर रहा है ना ही प्रशासन खनिज विभाग द्वारा कोई कार्यवाही की जा रही है,
पर्यावरण संरक्षण की दिशा पर काम करने वाले समाजसेवी लक्ष्मी चौहान ने बताया कि 11 फरवरी 2015 को एक जनसुनवाई आयोजित की गई थी जिसमें एआई की रिपोर्ट मे बताया गया था कि 62 मिलियन टन के लिए जनसुनवाई आयोजित है जिसमें बताया गया था कि 50 मिलियन टन की खुदाई लगभग 3500 हेक्टेयर में होगी लेकिन वर्तमान में 1665 हेक्टेयर में ही एसईसीएल द्वारा 50 मिलियन टन का प्रोडक्शन किया जा रहा है वर्तमान में एसईसीएल 2900 हेक्टेयर मे खनन कर रहा है जिसकी अनुमति नहीं है अनुमति केवल 1665 हेक्टेयर की है जो नियम विरुद्ध है
जबकि एसईसीएल की जमीन 1600 हेक्टेयर है जो 10 मिलियन टन के लिए है, जहां 10 मिलियन टन की खुदाई एसईसीएल को करनी चाहिए वहां 50 मिलियन टन का उत्पादन एसईसीएल द्वारा किया जा रहा है, जो नियमों का उल्लंघन है,
उन्होंने आगे बताया कि जिसका मुख्य कारण यह है कि गांव का अधिग्रहण विस्तार के लिए होना था वह कोल वेरी एक्ट नोटिफिकेशन किया गया था लेकिन एसईसीएल के अधिपत्य में वह जमीन नहीं आई थी, लगभग 10 ऐसे गांव हैं जिन पर विस्तार होना था वह जमीन एसईसीएल के अधिपत्य में नहीं है जिसके करण एसईसीएल के पास जमीन नहीं है जिस जमीन में 10 मिलियन टन की खुदाई करना चाहिए वहां एसईसीएल नियमों को ताक में रखकर 50 मिलियन टन का प्रोडक्शन कर रहा है, एसईसीएल कागजी और अंकड़ो के तौर पर फेस वन फेस 2 का नाम दे रहा है जो पूरी तरह पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन है,
लक्ष्मी चौहान ने आगे बताया कि कामन हाउस एक संस्था है जिनका एक केस सुप्रीम कोर्ट में चल रहा था जिसमें एसईसीएल द्वारा नियमों में उलझन पाए जाने पर 2017 में एक आदेश जारी किया गया था इस आदेश के कारण जिला प्रशासन कोरबा और खनिज विभाग कोरबा ने कोरबा में संचालित चारों माइंस दीपिका, गेवरा, कुसमुंडा, कोरबा एरिया को मिलाकर करीब 8000 (आठ हजार)करोड़ की पेनल्टी लगाई गई थी लेकिन 2017 से अभी तक इस मामले पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है,
समाजसेवी लक्ष्मी चौहान ने कहा कि एसईसीएल लगातार कोल बेरी एक्ट, पेसा एक्ट और पर्यावरण एक्ट का उल्लंघन करता आ रहा है एसईसीएल अगर 50 मिलियन टन का प्रोडक्शन कर रहा है तो एसईसीएल के पास 3500 हेक्टेयर भूमि होनी चाहिए लेकिन उनके पास 1600 हेक्टेयर भूमि है जो 10 मिलियन टन उत्पादन के लिए है,
उन्होंने सवाल खड़ा करते हुए कहा कि जब 2015 में 50 मिलियन टन के लिए जनसुनवाई आयोजित किया गया था जिसमें साफ कहा गया था कि 50 मिलियन टन का उत्पादन 3500 हेक्टेयर जमीन पर होगी जिसके लिए विभिन्न गांव की जमीन दो चरणों में अधिग्रहण करनी थी जिसमें पहले चरण में 1000 हेक्टेयर और दूसरे चरण में करीब 900 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहण करना था लेकिन एसईसीएल को 1600 हेक्टेयर भूमि में 50 मिलियन टन के उत्पादन की अनुमति कैसे दी गई अगर पहले अनुमति दी गई थी तो अभी लीज एरिया एक्सटेंशन के नाम 456 हेकटेयर भूमि की मांग क्यों की जा रही है अगर एसईसीएल 2500 हेकटेयर भूमि में उत्पादन कर रहा है तो फिर यह क्या है, अगर आपके पास लीज एरिया 2500 हेकटेयर था तो फिर 1500 हेकटेयर की परिसीमन क्यों दिया नहीं था एसईसीएल पर्यावरण क्लेरेंस क्यों नहीं कर रहा, यह सारी चीजे क्लीयरेंस होनी चाहिए, सुप्रीम कोर्ट ने जो कामन हाउस संस्था के केस में आदेश दिया था उस मामले को लेकर जल्द ही हम उस संस्था से मिलकर एसईसीएल द्वारा किए जा रहे नियमों के उल्लंघन की जानकारी देते हुए आगे की कार्यवाही के लिए सुप्रीम कोर्ट मामले को ले जाएंगे ।