छत्तीसगढ़/कोरबा :- कोरबा जिले के मानिकपुर चौकी क्षेत्र से एक ऐसी खबर सामने आई है, जिसने हर किसी का दिल दहला दिया। 45 वर्षीय राकेश चौहान—एक हुनरमंद पेंटर, एक जुझारू पिता और टूटती उम्मीदों से जूझता इंसान—ने गुरुवार की रात साड़ी से फांसी लगाकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली।
रोज़ की तरह खाया खाना, फिर कभी न लौटा
गुरुवार रात राकेश ने रोज़ की तरह अपनी बेटी और परिजनों के साथ खाना खाया और फिर अपने कमरे में सोने चला गया। लेकिन शुक्रवार सुबह जब वह बाहर नहीं आया, तो परिवार ने दरवाजा खोलकर देखा—और जो देखा, उससे सब कुछ थम गया। राकेश की देह फांसी के फंदे पर झूल रही थी। कमरे में पसरी खामोशी अब चीखों में बदल चुकी थी।
अकेलेपन ने घेरा, तंगी ने तोड़ा
राकेश की ज़िंदगी पहले ही कई झंझावातों से गुज़र चुकी थी। बारह साल पहले पत्नी ने उसे छोड़ दिया था और दूसरी शादी कर ली थी। तब से वह अपनी छोटी बेटी को अकेले पाल रहा था। बेटी अब नौवीं कक्षा में पढ़ रही है—उसकी आंखों में सपने थे और पिता की आंखों में उन्हें पूरा करने की जद्दोजहद।
राकेश पेंटिंग के काम में माहिर था, शहर में उसकी कला की तारीफ होती थी। लेकिन कलाकार होने के बावजूद, उसकी जेब में खालीपन था। बीते कुछ सालों से वह मानसिक रूप से परेशान था, लेकिन आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय थी कि इलाज भी मुमकिन नहीं था।
पुलिस जांच में सामने आई दिल तोड़ने वाली कहानी
मानिकपुर चौकी पुलिस मौके पर पहुंची, शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा और मामले की जांच शुरू की। प्रारंभिक जांच में पता चला है कि राकेश लंबे समय से मानसिक तनाव में था, लेकिन इलाज न करा पाने की मजबूरी ने अंततः उसे यह खौफनाक कदम उठाने पर मजबूर कर दिया।
छूट गईं अधूरी तस्वीरें, अधूरे सपने
राकेश के जाने के बाद उसके कमरे में अब भी दीवारों पर अधूरी पेंटिंग्स हैं—कुछ जिनमें रंग बाकी थे, कुछ जिनमें उम्मीद। लेकिन अब उन रंगों को पूरा करने वाला हाथ नहीं रहा।
उसकी बेटी—जिसके लिए वह पूरी दुनिया से लड़ रहा था—अब पिता के बिना उस दुनिया में अकेली है।
यह सिर्फ एक आत्महत्या नहीं, एक सिस्टम पर सवाल है। एक कलाकार, एक पिता और एक इंसान—सब कुछ हार गया, क्योंकि उसके पास इलाज का खर्च नहीं था।
काश, किसी ने वक्त रहते उसकी आवाज़ सुन ली होती। अगर आप या कोई आपका अपना मानसिक तनाव से जूझ रहा है, तो कृपया मदद लें। आपकी ज़िंदगी अनमोल है आप अकेले नहीं हैं।