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कुसमुण्डा GM कार्यालय में तालाबंदी, चूल्हा वहीं जला, भूविस्थापितों ने यहीं पकाया-खाया, कहा- हमें 22 सालों से छल रहे हैं

छत्तीसगढ़/कोरबा :- हमने ज़मीन दी, उम्मीदें दीं… पर अब 22 साल बाद भी खाली हाथ हैं। यह दर्द है उन सैकड़ों भूविस्थापितों का, जिन्होंने एसईसीएल कुसमुण्डा विस्तार परियोजना के लिए अपनी पुश्तैनी ज़मीनें समर्पित कर दी थीं। अब जब रोजगार देने की बारी आई, तो प्रबंधन पर फर्जी नियुक्तियों का आरोप लगाते हुए इन भूविस्थापितों ने मंगलवार को कुसमुण्डा मुख्य महाप्रबंधक कार्यालय के सामने तालाबंदी कर दो दिवसीय आंदोलन की शुरुआत की।

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धरना स्थल पर ही चूल्हा जला, महिलाएं रोटियाँ सेंकती रहीं, बच्चे वहीं थाल में भोजन करते दिखे। ये दृश्य न सिर्फ आंदोलन की दृढ़ता दिखाता है, बल्कि प्रशासनिक संवेदनहीनता पर करारा सवाल भी खड़ा करता है।

फर्ज़ी नियुक्तियों का आरोप, नोक-झोंक के बीच ताला जड़ा

भूविस्थापितों ने आरोप लगाया कि जिन ज़मीनों के एवज में उनके परिवारों को नौकरी मिलनी थी, वहाँ बाहरी और फर्जी लोगों को नियुक्त कर दिया गया। जब यह बात उठाई गई, तो अधिकारियों और भूविस्थापित प्रतिनिधियों के बीच जमकर नोक-झोंक हुई। अधिकारियों ने दावा किया कि मामला न्यायालय में लंबित है और इस पर फिलहाल कोई ठोस कार्यवाही नहीं की जा सकती। लेकिन आंदोलनकारी सवाल करते रहे – “क्या हमारी जमीनें लेते वक़्त मामला कोर्ट में था?”

22 वर्षों से दर-दर की ठोकरें

गोमतीं केंवट सहित सैकड़ों परिवारों का कहना है कि वे विगत दो दशकों से एक अदद नौकरी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हर बार उन्हें झूठे आश्वासन और कागज़ी कार्रवाइयों में उलझा दिया जाता है। न तो सूचना के अधिकार के तहत जानकारी दी जाती है, और जब विरोध करते हैं तो प्रशासन की लाठी और गिरफ्तारी मिलती है। क्या अपने अधिकार की माँग करना अब अपराध बन गया है?” – एक बुजुर्ग महिला की यह सिसकी देर तक धरना स्थल पर सन्नाटा भर देती है।

हाथ में बेलन साथ में तख्तियां चेहरे पर बेबसी और गुस्सा

धरना स्थल पर सोते हुए बच्चे, औरतों के हाथों में बेलन के साथ तख्तियाँ, और युवाओं के चेहरों पर गुस्सा और बेबसी साफ़ झलक रही है। यह कोई साधारण प्रदर्शन नहीं, बल्कि वो चीख है जिसे वर्षों से दबाया जा रहा था।

भूविस्थापितों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगों पर शीघ्र सुनवाई नहीं होती, तो खदानों का उत्पादन पूरी तरह ठप किया जाएगा और इसकी समस्त जवाबदारी मुख्य महाप्रबंधक सचिन तानाजी पाटिल, क्षेत्रीय कार्मिक प्रबंधक वीरेन्द्र कुमार और सुरक्षा अधिकारी भास्कर की होगी, जिन्होंने बार-बार झूठे वादे कर उनके भविष्य से खिलवाड़ किया है।

इस आंदोलन ने न सिर्फ एसईसीएल प्रबंधन को कठघरे में खड़ा किया है, बल्कि एक बार फिर यह याद दिलाया है कि विकास की कीमत चुकाने वालों को अक्सर सबसे पीछे छोड़ दिया जाता ।

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