छत्तीसगढ़/कोरबा :- जिले में शिक्षा और विकास—दोनों ही ‘राम भरोसे’ चल रहे हैं। शिक्षा विभाग की कमान प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी टी.पी. उपाध्याय के हाथों में है, जो अतिरिक्त जिम्मेदारियां निभा रहे हैं। स्थाई जिला शिक्षा अधिकारी की नियुक्ति न होने से शिक्षा व्यवस्था चरमराई हुई है और जनप्रतिनिधियों में गहरी नाराजगी देखी जा रही है।
जनप्रतिनिधियों का कहना है कि शिक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में स्थाई नेतृत्व की जरूरत है, ताकि जिले के सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता सुधार, शिक्षकों की कमी, और व्यवस्थागत खामियों को दूर किया जा सके।
विकास भी कागजों तक सिमटा
शिक्षा ही नहीं, जिला पंचायत स्तर पर भी विकास कार्य अटक गए हैं। स्थाई उपसंचालक की जगह प्रभारी अधिकारी विकास की ‘नैया पार लगाने’ की कोशिश में जुटे हैं, लेकिन परिणाम धरातल पर नहीं दिख रहे। ग्राम पंचायतों तक शासन की योजनाओं का लाभ पहुंचाने में गंभीर बाधाएं आ रही हैं।
स्थानीय सूत्र बताते हैं कि प्रभारी व्यवस्था के चलते भ्रष्टाचार भी तेजी से बढ़ा है। कई योजनाएं फाइलों में ही पूरी हो रही हैं, जबकि आदिवासी वनांचल क्षेत्रों के लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।
वनांचल के ‘राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र’ भी प्रभावित
कोरबा जिले के दूरस्थ पहाड़ी कोरवा इलाकों में शिक्षा और विकास की रफ्तार लगभग थमी हुई है। यह वही समुदाय है जिसे देश के राष्ट्रपति ने दत्तक पुत्र का दर्जा दिया है, लेकिन योजनाओं का लाभ उन तक पूरी तरह नहीं पहुंच पा रहा।
जनता और जनप्रतिनिधियों की मांग
जिले के लोगों और जनप्रतिनिधियों की मांग है कि तत्काल स्थाई जिला शिक्षा अधिकारी और स्थाई उपसंचालक की नियुक्ति की जाए, ताकि शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ किया जा सके और विकास योजनाओं का लाभ सही मायनों में अंतिम छोर तक पहुंच सके।