HomeBreaking Newsकार्तिक मास में न करें मट्ठे का सेवन, जिमीकंद बनेगा अमृत समान

कार्तिक मास में न करें मट्ठे का सेवन, जिमीकंद बनेगा अमृत समान

आयुर्वेदाचार्य डॉ. नागेंद्र नारायण शर्मा ने बताई कार्तिक मास की सही दिनचर्या व खानपान की आदतें

छत्तीसगढ़/कोरबा :-  हिंदी पंचांग के अनुसार कार्तिक मास का शुभारंभ इस वर्ष 8 अक्टूबर 2025, बुधवार से हो चुका है, जो 5 नवंबर 2025, बुधवार तक रहेगा। इस अवधि को आयुर्वेद में स्वास्थ्य संतुलन के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।
छत्तीसगढ़ प्रांत के ख्यातिलब्ध आयुर्वेद चिकित्सक नाड़ीवैद्य डॉ. नागेंद्र नारायण शर्मा ने इस पवित्र महीने में खानपान और जीवनशैली से जुड़ी विशेष सावधानियों की जानकारी दी है।

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 पित्त दोष का प्रकोप, आहार-विहार पर रखें ध्यान

डॉ. शर्मा के अनुसार, कार्तिक मास में आसमान साफ़ हो जाता है और सूर्य की चमक बढ़ जाती है, जिससे शरीर में पित्त दोष” बढ़ने की संभावना रहती है। इस दौरान त्वचा रोग, ज्वर, कास (खांसी) जैसे पित्तजनित रोगों का खतरा अधिक रहता है। ऐसे में हमें स्निग्ध, मधुर और तिक्त रसयुक्त, हल्के, पौष्टिक तथा ऊर्जा बनाए रखने वाले आहार का सेवन करना चाहिए।

 मट्ठा और दाल से करें परहेज

डॉ. शर्मा ने बताया कि कार्तिक मास में मट्ठा (छाछ) का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। यह पित्त को और अधिक बढ़ाता है, जिससे पाचन विकार, त्वचा संबंधी समस्याएं और ज्वर जैसी स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं। इसी प्रकार, इस महीने दाल का सेवन भी वर्जित माना गया है।

 मूली, आंवला और जिमीकंद का करें सेवन

आयुर्वेदाचार्य डॉ. शर्मा के अनुसार, कार्तिक मास में मूली और आंवला अत्यंत हितकारी हैं।
विशेष रूप से जिमीकंद (सूरन) का सेवन इस मास में अनिवार्य बताया गया है।
उन्होंने हँसते हुए कहा —

“दीपावली में जिमीकंद न खाने वाला अगले जन्म में छुछूंदर बनता है — यह लोकप्रचलित कहावत कार्तिक मास के आहार के महत्व को बताती है।”

रसायन सेवन से बढ़ेगी प्रतिरोधक क्षमता

डॉ. शर्मा ने सुझाव दिया कि इस मास में च्यवनप्राश और हरीतकी का सममात्रा में शर्करा के साथ सेवन शरीर को बल एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है।

 दिनचर्या में रखें ये सावधानियां

कार्तिक मास में संतुलित दिनचर्या अपनाना भी आवश्यक है

  • धूप, ओस और ठंडी हवाओं से बचें।

  • दिन में सोने की आदत से बचें।

  • भूख लगे बिना भोजन न करें।

  • अधिक व्यायाम या श्रम से परहेज रखें।

डॉ. शर्मा ने कहा

“कार्तिक मास शरीर को पवित्र और संतुलित रखने का समय है। अगर हम आयुर्वेद की ऋतुचर्या को अपनाएं, तो यह मौसम हमें नई ऊर्जा और दीर्घायु प्रदान कर सकता है।”

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