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ग्राम विकास के तस्वीर के बीच… उदासी को बयां करते पलायन में छुपा है इस गांव का सच : फसल कटाई- मिंजाई के बाद हरनमुड़ी की आधी आबादी काम की तलाश में कर जाते है पलायन, हो जाता है आधा गांव खाली

 ग्रामीणों की गांव में स्टापडेम की मांग.

छत्तीसगढ़/कोरबा-पाली :- “शहर की इस भीड़ में चल तो रहा हूं… ज़ेहन में पर गांव का नक़्शा रखा है”, ये शेर ताहिर अज़ीम का है लेकिन हर उस शख्स के भीतर है जो हर साल काम की तलाश में इस गांव से बाहर चला जाता है। किन्तु जिनके दिल में हमेशा उसका गांव आबाद होता है। महात्मा गांधी भी कहते थे भारत की आत्मा गावों में बसती है और असली भारत का दर्शन गांवों में ही सम्भव है। ये सब बातें बहुत सही हैं लेकिन जमीन पर हक़ीकत कुछ और है, छत्तीसगढ़ राज्य में गांव का दूसरा मतलब बेरोजगारी और पलायन भी तो है।

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हरे भरे खेत, बाग़- बगीचा, पोखर- तालाब, नदी- नालों का सौंदर्य और बुजुर्गों का घरों के बाहर अथवा चौराहों में इकट्ठा होकर बतियाना गांव की बहुत खूबसूरत तस्वीर होती है लेकिन ये सब मिलकर भी लोगों को गांव में रोक नहीं पाते और काम की तलाश में उन्हें सब छोड़कर एक दिन किसी शहर में प्रवासी बनना ही पड़ता है, यही पलायन गांवों की उदासी है और गांव की कितनी भी विकास के तस्वीर हो उसके भीतर का सच है। पाली विकासखण्ड के अंतर्गत आने वाले एवं सीमावर्ती जिला बिलासपुर की सीमा से लगा हुआ गांव हरनमुड़ी की तस्वीर भी कुछ ऐसी ही है जो ऊपर से खूबसूरत लेकिन भीतर से उदास है। इस पंचायत में वैसे अनेकों विकास के कार्य हुए है और बहुत कुछ बदला है। जहां गांव की सड़कें पहले से बहुत बेहतर हैं, सभी जरूरी भवन बने हुए हैं, बिजली रहती है, स्वास्थ्य, शिक्षा, संचार, स्वच्छता इन सब ने गांव का जीवन पहले से आसान कर दिया है। लेकिन जो यहां के निवासियों को सबसे ज्यादा खलता है वो गांव में युवा या वयस्क काम करने वाले लड़कों और पुरुषों का खेती- किसानी कार्य के बाद नजर नहीं आना। ज्यादातर का किसी शहर या महानगर में रोजी- रोटी के लिए चले जाना और उनके पीछे इस गांव में बूढ़ों, बच्चों, औरतों और लड़कियों का रह जाना है। ग्रामीणों को गांव में ही रोजगार दिलाने के लिए केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना लागू की है और जिस योजना के तहत सौ दिन रोजगार दिलाने की शर्त भी है। जिसके तहत इस पंचायत में वर्तमान 299 जाब कार्डधारी ग्रामीण मजदूर परिवार पंजीकृत है, बावजूद इसके यहां के अधिकतर निवासी धान की कटाई व मिंजाई के बाद बाहर कमाने खाने को पलायन कर जाते है। कारण मनरेगा के तहत पंचायत में तो काम होता है, मगर सप्ताह, पंद्रह या महीना दिन से ज्यादा काम लोगों को मिल नही पाता, तथा इसकी मजदूरी भी समय पर नही मिलती। बड़े किसान तो किसी तरह अपना गुजारा कर लेते है, मगर भूमिहीन मजदूरों के सामने खरीफ फसल के बाद काम का संकट खड़ा हो जाता है। इसी के चलते ज्यादातर ग्रामीण पलायन करने को मजबूर हो जाते है। यहां के निवासियों का कहना है कि शासन द्वारा ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित की जाए जिससे कि इस ग्राम के लोगों को काम की तलाश में बाहर जाना न पड़े और गांव में ही उन्हें रोजगार के साधन उपलब्ध हो सके।

पलायन रोकने ग्रामीणों ने शासन- प्रशासन से की ये अपेक्षित मांग
यहां के ग्रामीणों ने बताया कि खूंटाघाट खारंग जलाशय से उनका हरनमुड़ी ग्राम लगा हुआ है। जिसमें गर्मी के दिनों में पानी रोके रखने कोई व्यवस्था नही है। यदि शासन की ओर से इस जलाशय के बहाव वाले नाले में स्टापडेम का निर्माण हो जाए तो खेतों में दो फसल ली जा सकेगी और भूमिहीन मजदूरों को काम भी मिल सकेगा। वहीं किसान वर्ग डबल फसल के साथ सब्जी- बाड़ी लगाकर आर्थिक रूप से मजबूत हो सकते है और तब उन्हें कमाने के लिए गांव से बाहर जाने की जरूरत नही पड़ेगी। ग्रामीणों ने बताया कि खारंग जलाशय में स्टापडेम निर्माण की मांग शासन- प्रशासन से करते आ रहे है, पर इस दिशा पर कोई पहल नही हो पाया है। जिससे फसल कटाई- मिंजाई के बाद लोगों को परिवार का गुजर- बसर करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। जिससे गांव के अधिकतर युवा व वयस्क वर्गों को कमाने के लिए बाहर जाना पड़ता है।

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