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कामनाओं का त्याग कर कर्म करना ही सन्यास है- पंडित विजय शंकर मेहता

भगवान कृष्ण के देहत्याग की कथा सुनकर भावुक हुए श्रोतागण, कथा पर लगा विराम, कल हवन-पूजन के साथ सम्पन्न होगा श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ

छत्तीसगढ़/कोरबा :-  मृत्यु से कोई नहीं बच पाया, जो आया है, वह एक दिन जाएगा ही। मृत्यु से न ईश्वर बचा, तो मानव की क्या विसात। महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ, हस्तिनापुर विरान हो गया, चारों तरफ सन्नाटा बिखरा पड़ा था। कौरव वंश समाप्त हो गया, महल में गांधारी और धृतराष्ट्र अपनी जिंदगी का आखरी पल बिता रहे थे। कृष्ण उनसे मिलने आए, दिल में आग भभक रही थी, गांधारी के मूंह से श्राप निकला- कृष्ण तुमने मेरा वंश खत्म कर दिया और हमें तड़प-तड़प कर मरने के लिए छोड़ दिया, तुम भी जब मरोगे, तो सिर्फ अकेले रहोगे, तुम्हारा वंश भी खत्म हो जाएगा।           
स्वधाम गमन के पूर्व यह सब नजारा भगवान कृष्ण की आंखों के सामने तैरने लगे। उद्धव को भगवत गीता का ज्ञान देकर कृष्ण ने कहा-तुम जाओ, मेरे स्वधाम गमन का समय आ गया है और वे वहां से जंगल की ओर निकल पड़े। मृत्यु के समय भगवान चिंतन करने लगे और एक पीपल के पेड़ में टिक कर सब सोचने लगे, तभी सामने जंगल में हलचल हुई और बाण से तीर कृष्ण के शरीर पर लगा। जरा नामक शिकारी जंगल की ओर शिकार करने आया था और तीर कृष्ण को लगी। तीर लगते ही शिकारी, शिकार के पास आया और देखा तो पश्चाताप करने लगा और भगवान के श्रीचरणों में गिर पड़ा। भगवान कृष्ण ने कहा-ये तुम्हारी गलती नहीं, यह नियति और कर्म का खेल है। जो यहां आया है, उसे एक दिन जाना है। यह मार्मिक कथा पितृमोक्षार्थ गयाश्राद्धांतर्गत मातनहेलिया परिवार द्वारा जश्न रिसोर्ट कोरबा में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के सातवें और अंतिम दिन कथा वाचक पंडित विजय शंकर मेहता के श्रीमुख से निकली करूण कथा थी, जिसे सुनकर श्रोतागण भावुक हो गए।
इसके पूर्व कथा वाचक पंडित विजय शंकर मेहता ने उद्धव-कृष्ण का प्रसंग सुनाया और कृष्ण ने जीवन के जो यथार्थ को उद्धव को सुनाया था, कथा वाचक ने संक्षिप्त में श्रोतागणों को सुनाया। कृष्ण ने उद्धव से कहा-सन्यास के लिए भगवा वस्त्र पहनना जरूरी नहीं, जो कामनाओं का त्याग कर कर्म करता है, वही सन्यास है। पंडित मेहता ने कहा कि मानव जीवन में संकट और परेशानियां आएंगी और इनका हल भी स्वयं के पास होता है। सुख के पल कब चले जाते हैं, पता नहीं चलता, लेकिन संकट का एक-एक पल युग जैसा लगता है। उन्होंने कहा कि परीक्षित को कथा सुनाते समय भगवान के स्वधाम गमन के बाद कलयुग की विशेषताएं भी शुकदेव ने बताई और कहा कि जो भ्रष्ट हैं, उन्हें ऊंची सत्ता मिलेगी और जो ईमानदार हैं, उन्हें रेगिस्तान जैसा जीवन जीना पड़ेगा। न्यायालय में जो पैसा खर्च नहीं कर पाएगा, उसे न्याय नहीं मिलेगा। उन्होंने कहा-दूसरों पर दोष न ढूंढ़ें, स्वयं के दोष के देखें और उसे दूर करने का प्रयास करें, तो यह संसार सुखमय लगेगा, यही जीवन का सार है।
जाति का भेदभाव नहीं, यह व्यवस्था है
सनातन धर्म में समाज को चार वर्गों में बांटा गया। ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य एवं शुद्र। इस व्यवस्था को आज जातिगत भेदभाव का स्वरूप दे दिया गया। उन्होंने कहा कि भेदभाव मिटना चाहिए। सनातन धर्म में कथा, प्रवचन, उपदेश देने वालों को ब्राह्मण, राज करने वालों को क्षत्रीय, व्यापार, व्यवसाय करने वालों को वैश्य एवं सेवा करने वालों को शुद्र वर्ग में बांटा गया। कालांतर में इसे जातिगत भेदभाव का स्वरूप दे दिया गया और यहीं से हमारा समाज बंट गया। भेदभाव काफी हद तक मिटा, लेकिन इसे समाप्त होना चाहिए।
मूर्ति के सामने बैठ कर करें ध्यान
घर में या जहां भी आप ध्यान करें, भगवान हनुमान या किसी की मूर्ति सामने रखकर ध्यान करें, तो ज्यादा प्रभाव पड़ेगा और मूर्ति रखने से चारों तरफ सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा।
ससुराल की बुराई कभी न करें
कथा वाचक एवं जीवन प्रबंधन गुरू पंडित विजय शंकर मेहता ने कहा कि जब भी दूसरे घर की बेटी व्याह करके लाते हैं, तो उसे घर की लक्ष्मी समझें, ससुराल की कभी बुराई न करें, क्योंकि उन्होंने अपने जिगर के टुकड़े को आपको सौंपा है। परिवार के साथ समय बिताएं, एक-दूसरे से संवाद करें, तभी परिवार बचेगा और खुशहाल रहेगा। परिवार बचाने के लिए झूकना सीखें, हारना सीखें, इसी में ही जीत है।
दूसरों पर दोष ढ़ूंढ़ना, सबसे बड़ा दोष है
पंडित विजय शंकर मेहता ने आज के कल्चर पर प्रहार करते हुए कहा कि आज लोग दूसरों पर दोष ढ़ूंढ़ते हैं और यह आज का ट्रेंड बन गया है। दूसरों पर दोष ढ़ूंढ़ना ही, मानव का सबसे बड़ा दोष है। स्वयं के दोष को ढ़ूंढ़ें और उसे दूर करने का प्रयास करें। ऐसा करने से मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा। दूसरों को बिना अपेक्षा कुछ देने का प्रयास होते रहना चाहिए।
कृष्ण गीता में मिलेंगे
कथा वाचक पंडित विजय शंकर मेहता ने कृष्ण-उद्धव प्रसंग सुनाते हुए कहा कि कृष्ण ने कहा-हे उद्धव! मेरे जाने के बाद लोग मुझे ढ़ूंढ़ेंगे, तो उनसे कहना-मैं गीता में मिलूंगा। स्वधाम गमन के समय कृष्ण ने उद्धव से कहा-जो यहां आया है, उसे जाना ही पड़ेगा। मेरा समय आ गया है, पीछे मुड़कर मत देखना… और श्रीकृष्ण शिकारी जरा के हाथों अपनी देह त्यागते हैं। मृत्यु से पूर्व उद्धव से कृष्ण ने कहा था-नियति और कर्म के नियम होते हैं, उसी के अनुसार ही मौत मिलती है।
आयुक्त आशुतोष पाण्डेय पहुंचे कथा श्रवण करने, व्यास पीठ से लिया आशीर्वाद
आईएएस निगम आयुक्त आशुतोष पाण्डेय आज कथा समाप्ति तक कथा का श्रवण किया और व्यास पीठ से आशीर्वाद लिया। आज पूर्व महापौर राजकिशोर प्रसाद सहित कोरबा के कई गणमान्य नागरिकों ने पंडित विजय शंकर मेहता से कथा श्रवण कर धन्य हुए।

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