आयुक्त और लेखा अधिकारी के प्रमाण व मांग पत्र में तालमेल नहीं, क्यों…?
छत्तीसगढ़/कोरबा :- नगर पालिक निगम कोरबा में वित्तीय घोटाले की खिचड़ी पक रही है। शासन को लिखे गए आयुक्त के मांग पत्र और लेखा अधिकारी के द्वारा की गई राशि की मांग सहित उपयोगिता प्रमाण पत्र में भिन्नता यह बताने के लिए काफी है कि नगर निगम में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। यह आपसी खींचतान का परिणाम है या फिर लेखा अधिकारी की मनमानी, यह तो अधिकारी ही जाने लेकिन शासन की नजरों से यह गड़बड़ी बच नहीं पाई और 20 लाख रुपए की वित्तीय अनियमितता उजागर हुई है। इसे लेकर अधिकारी की कार्यशैली सवालों के घेरे में आ गई है। दूसरी तरफ आयुक्त ने सभी अधीक्षण अभियंताओं को पत्र जारी कर 14 वें और 15 वें वित्त मद से प्राप्त राशि का भुगतान और उपयोगिता प्रमाण पत्र अविलंब प्रस्तुत करने पत्र जारी किया है, जिसे लेकर अधिकारियों की नींद उड़ गई है।
आयुक्त नगर पालिक निगम कोरबा व लेखा अधिकारी नगर पालिक निगम को कारण बताओ सूचना जारी किए जाने के बाद से निगम में हड़कम्प मची हुई है। निगम आयुक्त व लेखा अधिकारी के द्वारा पत्र दिनांक 13.03.2024 के संदर्भ में यह नोटिस जारी किया गया है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में नगर पालिक निगम, कोरबा को संचालनालय नगरीय प्रशासन एवं विकास, नवा रायपुर के आदेश क्रमांक 6752 दिनांक 23.03.2022 द्वारा 13 विकास कार्यों हेतु अधोसंरचना मद अंतर्गत राशि रू. 700 लाख की स्वीकृति प्रदान कर किश्त राशि रूपये 520 लाख आबंटित की गई है। संदर्भित पत्र के माध्यम से आपके (आयुक्त व लेखा अधिकारी) द्वारा उपयोगिता प्रमाण पत्र प्रेषित कर शेष राशि की मांग की गई है। प्राप्त उपयोगिता प्रमाण पत्र में निम्नानुसार अनियमितता पायी गई है:-
नगर पालिक निगम कोरबा से प्राप्त पत्र के संलग्न उपयोगिता प्रमाण पत्र के भौतिक प्रगति पत्रक एवं शासन / संचालनालय द्वारा स्वीकृत क्रमांक में भिन्नता है। भौतिक प्रगति पत्रक में उल्लेखित कार्य क्र. 2 और 9 में दिये गये कार्यों को शासन से जारी स्वीकृति आदेश में स्वीकृति नहीं दी गई है, फिर भी उपयोगिता प्रमाण पत्र में उल्लेखित कर राशि की मांग की गई है।
निकाय को प्राप्त राशि और पत्र में व्यय राशि संलग्न उपयोगिता प्रमाण-पत्र में व्यय राशि का उल्लेख अलग-अलग है। साथ ही दो प्रकार के भौतिक प्रगति पत्रक संलग्न किये गये हैं, जिसमें पूर्ण कार्यों का व्यय प्रगतिरत कार्यों के व्यय में भी अंतर है।
दो उपयोगिता प्रमाण पत्र संलग्न है, एक में राशि 280 लाख रुपए की मांग है जिसमें सिर्फ लेखा अधिकारी के हस्ताक्षर हैं। दूसरे उपयोगिता प्रमाण-पत्र में मांग राशि रू. 200.14 लाख का उल्लेख है, जबकि निकाय को देने योग्य राशि रू. 180 लाख ही है। आयुक्त के हस्ताक्षर पत्र में भी राशि रू. 180 लाख का उल्लेख है। इस प्रकार 03 पत्रक में अलग-अलग राशि की मांग की गई है। निकाय द्वारा स्वीकृत राशि से अधिक राशि की मांग की गई है। इस तरह राशि रु. 20 लाख रू. की मांग गलत तरीके से की गई है, जो कि आर्थिक अनियमितता है। संचालनालय ने जवाब मांगते हुए विरुद्ध में अनुशासनात्मक कार्यवाही की चेतावनी दी है।