छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य वन में लगातार पेड़ों की कटाई जारी है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने राज्यसभा को बताया कि आने वाले सालों में 2.73 लाख से अधिक पेड़ और काटे जाएंगे। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने जानकारी दी कि इससे पहले भी करीब 95000 पेड़ काटे गए हैं। बताया गया कि पेड़ों की कटाई हसदेव अरण्य वन में कोयला खनन के लिए किया जा रहा है।
हसदेव अरण्य वन में काटे जाएंगे 2.73 लाख से अधिक पेड़
नुकसान की भरपाई के लिए कुल 53,40,586 पेड़ लगाए गए
पीटीआई, नई दिल्ली- कोरबा :- सरकार ने गुरुवार को राज्यसभा को बताया कि छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य वन में कोयला खनन के लिए करीब 95,000 पेड़ काटे गए हैं। आने वाले वर्षों में 2.73 लाख से अधिक पेड़ और काटे जाएंगे। एक सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार के अनुसार परसा ईस्ट केंते बासेन माइन (पीईकेबी) में 94,460 पेड़ काटे गए हैं। नुकसान की भरपाई कुल 53,40,586 पेड़ लगाए गए हैं। नए लगाए गए पेड़ों में से 40,93,395 पेड़ बच गए हैं। आने वाले वर्षों में हसदेव अरण्य में 2,73,757 और पेड़ों को काटना होगा।1,70,000 हेक्टेयर में फैला हुआ है हसदेव अरण्य
छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में हसदेव अरण्य 1,70,000 हेक्टेयर में फैला हुआ है और देश की राजधानी दिल्ली से भी बड़ा है
क्यों खास है आदिवासियों के लिए हसदेव का जंगल
मध्य भारत का फेफड़ा होने के साथ ही हसदेव अरण्य तीन राज्यों के जंगलों को जोड़ता है. एक छोर मध्य प्रदेश के कान्हा जंगल से जुड़ा है तो दूसरा छोर झारखंड के पलामू तक फैला है. छत्तीसगढ़ में यह जंगल कोरबा, सरगुजा और सूरजपुर जिलों में फैला हुआ है. इसी क्षेत्र में हसदेव नदी बहती है. हसदेव के जंगल हसदेव नदी का कैचमेंट एरिया है. हसदेव नदी पर बने मिनी माता बांगो बांध से बिलासपुर, जांजगीर चांपा और कोरबा के खेतों और लोगों को पानी मिलता है.एक ओर सैकड़ों एकड़ खेत संचित होते हैं. तो दूसरी तरफ कोरबा में संचालित दर्जन भर पावर प्लांट को यहीं से पानी मिलता है, जिससे बिजली पैदा होती है. इससे न सिर्फ प्रदेश बल्कि देश के कई अन्य राज्यों को भी रोशनी मिलती है. इतना ही नहीं हसदेव के जंगल में हाथी समेत 25 वन्य प्राणियों का रहवास और उनके आवागमन का क्षेत्र है. करीब 1 लाख 70 हजार हेक्टेयर में फैला यह जंगल अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता है. यहां गोंड, लोहार और ओरांव, पहाड़ी कोरवा जैसी आदिवासी जातियों के 10 हजार लोगों का घर है. 82 तरह के पक्षी, दुर्लभ प्रजाति की तितलियां और 167 प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं.
यहां प्रस्तावित है लेमरु हाथी रिजर्व
केंद्र सरकार की तरफ से 2018 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में देश के केवल एक प्रतिशत हाथी हैं. लेकिन इसी जंगली सीमा में ओडिशा, झारखंड और मध्य प्रदेश लगा हुआ है. इस वजह से हसदेव का जंगल हाथियों की आवाजाही का रास्ता है. वनों की कटाई के कारण प्रदेश में हाथी मानव द्वंद्व की घटनाएं बढ़ गई हैं. स्थानीय लोगों की मांग और हाथियों के संरक्षण के लिए वन क्षेत्र के करीब 2 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को हाथी रिजर्व घोषित किया गया है. इस रिजर्व को लेमरु हाथी रिजर्व नाम दिया गया है. जो अधर में लटका हुआ है. कुछ काम हुए भी हैं. लेकिन अंतिम नोटिफिकेशन फिलहाल जारी नहीं हुआ है.
ये है विरोध की असली वजह
हसदेव अरण्य का पूरा क्षेत्र पांचवीं अनूसूची में आता है. ऐसे में वहां खनन के लिए ग्राम सभा की मंजूरी जरुरी है. आंदोलन कर रहे लोगों का कहना है कि ग्राम सभा ने मंजूरी नहीं दी है. वजह यह है कि परसा ईस्ट केते बासेन खदान के लिए कुल 1136 हेक्टेयर जंगल काटा जाना है, जिसमें से 137 हेक्टेयर काटा जा चुका है. इसके साथ ही परसा कोल ब्लॉक के 1267 हेक्टेयर भविष्य में काटा जाएगा. लगभग 9 लाख पेड़ काटे जाएंगे. इससे वन्य जीवों और वनस्पति के साथ हसदेव नदी का केचमेंट भी प्रभावित होगा. केंद्र सरकार द्वारा किये गए सर्वे में हसदेव अरण्य क्षेत्र में कुल 22 कॉल ब्लॉक के मौजूद होने के प्रमाण मिले हैं.